*अज़ान  कब और कैसे शुरू हुई* 

*तवारिखी वाक़आ*👇🏽

उस वक्त मक्का मे बहुत कम मुसलमान हुवे थे । और मुसलमानो के जान पे ख़तरा रहता था । जमाअत के साथ नमाज़ पढ़ने के लिये एक दूसरे को एक दूसरे से  बुला लिया करते थे लेकिन नमाज़ के लिये बुलाने का कोई आगाज़ करने का तरीका नही था । बाद मे  हुज़ूर ﷺ मक्का से मदीना हिजरत करके तशरीफ़ ले गये और वहाँ मस्जिदे कूफ़ा के बाद  नमाज़ के लिये मस्जिदे नब्वी तामीर की गयी । हिजरी 2 साल के बाद मुसलमानों की तादाद बढ़ने लगी और जमाअत की नमाज़ के लिये "' अस सलातुल जामिया " ....(नमाज़ के लिये सब जमा है ! )  की जोर से पुकार किया जाता था। और जो सुनता था वो जमाअत की नमाज़ मे शामिल हो जाता था। लेकिन अब मुसलमानों को  नमाज़ के लिये बुलाने का कोई तरीका ढूंढना हुज़ूर ﷺ और सहाबियों को ज़रूरी लगने  लगा था। और हुज़ूर ﷺ  ने तमाम सहाबियों के साथ इस्लाह और  मशोरा शुरू किया ।

■ किसी ने °यहूदियों° की तरह *ब्यूगल*  फूंकने की पेशकश की,

■ किसी ने °ईसाईयों° की तरह चर्च मे बुलाने के लिये *घन्टा* बजाने की पेशकश की,

■ किसीने आतिश परस्तों की तरह *मोमबत्ती जला* के नमाज़ के लिये बुलाने की पेशकश की। 

लेकिन हुज़ूर ﷺ  को किसी की भी पेशकश दिलकश नही लगी और  इत्मीनान नही हुवा और बेश्तर  अच्छी सिफारिश के लिये राह देखने का सोचा , इस  उमीद पे के इस पे अल्लाह के तरफ से  कोई  अच्छा सुजाव या तरीका का कोई हुक्म आ जाये और उसके लिये  इंतज़ार करने लगे। 

कुछ दिनों के बीतने के  बाद एक दिन अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु सहाबी हुज़ूर ﷺ  के पास आये और  कहने लगे  "या रसुल्लाह ! मैंने कल एक खूबसूरत ख्वाब देखा " हुज़ूर ﷺ  ने पूछा कैसा ख्वाब देखा ?

अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु  ने जवाब दिया " मैंने हरे लिबास मे एक शख्स को ख्वाब में देखा जो मुझे अज़ान के अलफ़ाज़ सीखा रहा था और फिर उसने मशोरा दिया कि इसी अल्फ़ाज़ों से लोगों को नमाज़ों के लिये बुलाया करो " और बाद मे उन्होंने हुज़ूर ﷺ  को अज़ान के वो अलफ़ाज़ सुनाये जो उन्होंने ख्वाब मे सीखा था ।

हुज़ूर ﷺ को अज़ान के अल्फ़ाज़ का अंदाज़ और मतलब बहुत खुबसूरत लगा और अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद रजियल्लाहु  अन्हु के ख्वाब को सच माना और उसको तस्लीम कर लिया ।  और हुज़ूर ﷺ  ने अब्दुल्ला इब्ने ज़ैद रजियल्लाहु अन्हु  को  #अज़ान के ये अलफ़ाज़* हज़रत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु  को सीखाने को कहा।

★ इस के बाद नमाज़ का वक़्त होते ही हज़रत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु  खड़े हुवे और नमाज़ के लिये अज़ान दी। हज़रत बिलाल रजियल्लाहु अन्हु  की अज़ान की आवाज़ मदीना शरीफ मे गूंज उठी और लोग सुनके मस्जिदे नब्वी की तरफ तेज़ रफ्तारसे चलते दौड़ते आने लगे । हज़रत उमर इब्ने खत्ताब रजियल्लाहु अन्हु भी आ गये और उन्होंने हुज़ूर ﷺ से कहा "#या_रसुलल्लाह ﷺ मुझे भी ये ही अज़ान एक फ़रिश्ते ने कल रात ख्वाब मे आके  सिखाया था  " और ये सुनने  के बाद हुज़ूर ﷺ को इत्मीनान हुवा और  इस अज़ान को नमाज़ के लिये बुलाने और पुकारने के लिये हंमेशा के लिये  "मुहर" (confirmed)  लगा दिया  उसे final कर दिया ।

Reference
(बुखारी शरीफ  book 1 volume 11 हदीस नम्बर 577, 578, 579, 580, )

Note :-

आज हम सब मस्जिदों से जो अज़ान सुन रहे हैं वो अल्लाह के तरफ से भेजी गयी अज़ान है इसलिये अज़ान के वक़्त अदब से चुप रहना , उसकी ताज़ीम करना, उसको सुन्ना और उसका जवाब देना "लाज़मी" है और उस्मे ख़ैरो बर्कत और फ़ज़ीलत छुपी है और उसकी ताज़ीम न करना उसकी बेअदबी है और गुनाह का सबब बन सकता है और उसकी वजह से अल्लाह का खौफ उसपे उतर सकता है या ख़ैरो बर्कत से महरुम हो सकता है।
*_______________________________*
आप लोग इस एप को डाउनलोड कीजिए बैलेंस मिलेगा माशा अल्लाह मुझे अब तक *₹ 22000* का बैलेंस मिल चुका है एप लोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें 👉🏽 http://share.tbal.io/v2/app?m=&code=2AW2FRE9
*_______________________________*
एप डाउनलोड करने का तरीका इस वीडियो में देखें और चैनल को सब्सक्राइब भी करें 👇🏽 https://youtu.be/uDc-UdNIYkM